tag:blogger.com,1999:blog-4086390394895615094.post6026632501352018194..comments2022-04-01T11:03:40.475+05:30Comments on Hearth : जब तक आदमी का होना प्रासंगिक है कविता भी प्रासंगिक है - कुमार मुकुल common placehttp://www.blogger.com/profile/13679156651475084122noreply@blogger.comBlogger6125tag:blogger.com,1999:blog-4086390394895615094.post-16089293678795883782017-04-07T11:51:52.742+05:302017-04-07T11:51:52.742+05:30Sdhanywaad sir.Sdhanywaad sir.Anonymoushttps://www.blogger.com/profile/02052472985637886035noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4086390394895615094.post-41078660659658164162017-04-06T11:13:44.359+05:302017-04-06T11:13:44.359+05:30भाई नेट पर यह रोमन हिंदी का चक्कर तो चलता रहता है...भाई नेट पर यह रोमन हिंदी का चक्कर तो चलता रहता है, मूल है अपनी बात कहना, लिपी कोई भी हो। किताबों में लोहिया रचनावली, नेहरू की विश्व इतिहास की झलक, गांधी की आत्मकथा, गोर्की की मेरे विश्वविद्यालय, उपनिषद, ऋग्वेद, परिवार निजी संपत्ति और राज्य की उत्पत्ति - एंगेल्स, वॉन गॉग की जीवनी -लस्ट फॉर लाइफ, चेखोव की कहानियां, अन्ना करेनिना, अपराध और दंड,टैगोर का गोरा, प्रेमचंद के मानसरोवर, जैनेन्द्र का त्यागपत्र आदि किताबों पढ लेनी चाहिए। Kumar Mukulhttps://www.blogger.com/profile/04890735360499335970noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4086390394895615094.post-88483922434734904422017-04-06T01:11:50.604+05:302017-04-06T01:11:50.604+05:30Sir sabse pahle kshamaprarthi hoon ki roman font m...Sir sabse pahle kshamaprarthi hoon ki roman font me likh raha hoon,is samay mere paas hindi fonts uplabdh nahi hain,<br />Sir antim prashna ka uttar kya raha ki kaun si pustake hain jo sabko padhni chahiye.Anonymoushttps://www.blogger.com/profile/02052472985637886035noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4086390394895615094.post-36502385721970970032017-03-27T23:36:36.170+05:302017-03-27T23:36:36.170+05:30सही कहा आपने बिना संवाद के लिखना नहीं हो सकता... स...सही कहा आपने बिना संवाद के लिखना नहीं हो सकता... संवाद ही लिखने के लिए प्रेरित करता है... बेहतरीन साक्षात्कार.Anonymoushttps://www.blogger.com/profile/06125842046153481439noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4086390394895615094.post-41504472709301046612017-03-27T18:06:50.798+05:302017-03-27T18:06:50.798+05:30भाई राजू, आपका सवाल मौजू है। यह कोई नियम नहीं जो ह...भाई राजू, आपका सवाल मौजू है। यह कोई नियम नहीं जो हर पाठक पर लागू हो। मैंने अपनी बाबत कहा है आप भी अपनी बाबत कह रहे। जैसे मैं 'शेखर एक जीवनी' को कुछ पेज पढने के बाद नहीं पढ पाया। जबकि उनकी ही पुस्तक 'नदी के द्वीप' को तेजी से पढ गया था। हमारी रूचियों का निर्माण जिन परिस्थितियेां में होता है उस पर यह सब निर्भर करता है। Kumar Mukulhttps://www.blogger.com/profile/04890735360499335970noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4086390394895615094.post-38779192248671102912017-03-25T17:53:09.412+05:302017-03-25T17:53:09.412+05:30बहुत बढ़िया साक्षात्कार ! पांचवे प्रश्न के उत्तर मे...बहुत बढ़िया साक्षात्कार ! पांचवे प्रश्न के उत्तर मेन आपने कहा कि एक पंक्ति या पेज पढ़कर पता चल जाता है कि आगे पढ़ना है या नहीं । यहाँ क्या यह रचना आपकी रुचि की है या नहीं - यह पता चल जाता है या उसकी गुणवत्ता का पता चल जाता है ? यह शायद छोटी रचनाओं तक सत्य हो परंतु लंबी रचनाओं के निष्कर्ष तक इतनी जल्दी नहीं पहुंचा जा सकता । जैसे शेखर एक जीवनी के कई पृष्ठों तक आप कुछ भी अंदाजा नहीं लगा सकते । Raju Ranjanhttps://www.blogger.com/profile/05103303716997058064noreply@blogger.com