आखिरी जन कवि की पहली पुण्यतिथि


जेएनयू को अगर राष्ट्र मान ले तो उस राष्ट्र के राष्ट्रीय कवि थे रमाशंकर यादव विद्रोही। विद्रोही जी ने पिछले साल इसी दिन दिल्ली में यूजीसी के सामने सरकार के पीएचडी कर रहे छात्रों के स्कॉलरशिप वापस लेने के फैसले का विरोध करते हुए अपनी आखिरी सांस ली। दिल्ली के कड़कड़ाती हुई ठण्ड में भी वो छात्रों के साथ धरने पर बैठे रहे और अपनी कविता से उन ऊँचे ओहदे पर बैठे लोगों को ललकारते रहे। वो कवि थे और उनकी कविता का छंद, रस और अलंकार था विद्रोह करना और रमाशंकर यादव आखिरी समय तक सत्ता से विद्रोह करते रहे। उनके जीवन का केंद्र भले ही जेएनयू था लेकिन वो अपनी कविता में जॉर्ज बुश से ले के भगवा हुकुमत को ललकारते रहे, वो कविता के अखाड़े में भारत भाग्य विधाता से ले के भगवान तक को पटकनी दे देते रहे। वो कबीर की तरह अखड़ और दू टुक बात करते रहे। विद्रोही जी की दो खासियत थी एक तो उनकी कविता शीर्षक मुक्त थी दुसरे विद्रोही जी को उनकी सारी कवितायेँ मुंह जुबानी याद थी मानो विद्रोही जी ने कविता सिर्फ लिखा ही नहीं बल्कि हर एक शब्द को जिया है। उनकी कविता बंद कमरें में कैद नहीं थी , उनकी कविता आम आदमी और व्यवस्था के घर्षण की ऊपज थी और इस टकराहट के गवाह छात्रों के साथ अनेक रिक्शेवाले, दिहाड़ी मजदूर,मेहनतकश जनता थी ।
पिछले साल जब उनके निधन के बाद जेएनयू में उनका शव रखा है तो उनके अंतिम दर्शन में उनके चाहने वालों का हुजूम उमड़ पड़ा। तरौनी में बाबा नागार्जुन के दाह संस्कार में जितने लोग नम्र आंखों से उन्हें विदाई दे रहे थे वैसा विदाई बहुत दिन बाद किसी कवि को मिला। अब जब कविता सिलेबस के किताबों तक सिमट गयी है विद्रोही की कविता आम जनता से बातचीत करती, उनसे संबंध स्थापित करती है ।
1.
कविता क्या है
खेती है,
कवि के बेटा-बेटी है,
बाप का सूद है, मां की रोटी है। 
2.
हमारे खुरदुरे पांव की ठोकर से 
धसक सकती है ये तुम्हारी ज़मीन, 
हमारे खर्राये हुए हाथों की रगड़ से 
लहुलुहान हो सकता है 
तुम्हारा ये कोमल आसमान।।।
हम अपने ख़ून चूते नाख़ूनों से 
चीर देंगे तुम्हारे मखमली गलीचों को,
जब हम एक दिन ज़मीन से आसमान तक 
खड़े कर फाड़ देंगे तुम्हारे मेहराबें, 
तो न उसमें से कोई कच्छप निकलेगा न कोई नरसिंह।।।
3.
..और ये इंसान की बिखरी हुई हड्डियाँ
रोमन के गुलामों की भी हो सकती हैं और
बंगाल के जुलाहों की भी या फिर
वियतनामी, फ़िलिस्तीनी बच्चों की
साम्राज्य आख़िर साम्राज्य होता है
चाहे रोमन साम्राज्य हो, ब्रिटिश साम्राज्य हो
या अत्याधुनिक अमरीकी साम्राज्य
जिसका यही काम होता है कि
पहाड़ों पर पठारों पर नदी किनारे
सागर तीरे इंसानों की हड्डियाँ बिखेरना
4.
धर्म आखिर धर्म होता है
जो सूअरों को भगवान बना देता है,
चढ़ा देता है नागों के फन पर
गायों का थन,
धर्म की आज्ञा है कि लोग दबा रखें नाक
और महसूस करें कि भगवान गंदे में भी
गमकता है।
जिसने भी किया है संदेह
लग जाता है उसके पीछे जयंत वाला बाण,
और एक समझौते के तहत
हर अदालत बंद कर लेती है दरवाजा।
अदालतों के फैसले आदमी नहीं
पुरानी पोथियां करती हैं,
जिनमें दर्ज है पहले से ही
लंबे कुर्ते और छोटी-छोटी कमीजों
की दंड व्यवस्था।
5.
इतिहास में वह पहली औरत कौन थी 
जिसे सबसे पहले जलाया गया?
मैं नहीं जानता
लेकिन जो भी रही हो मेरी माँ रही होगी,
मेरी चिंता यह है कि भविष्य में वह आखिरी स्त्री कौन होगी
जिसे सबसे अंत में जलाया जाएगा?
मैं नहीं जानता
लेकिन जो भी होगी मेरी बेटी होगी
और यह मैं नहीं होने दूँगा।
6.
मैं भी मरूंगा
और भारत के भाग्य विधाता भी मरेंगे
लेकिन मैं चाहता हूं
कि पहले जन-गण-मन अधिनायक मरें
फिर भारत भाग्य विधाता मरें
फिर साधू के काका मरें
यानी सारे बड़े-बड़े लोग पहले मर लें
फिर मैं मरूं- आराम से
उधर चल कर वसंत ऋतु में
जब दानों में दूध और आमों में बौर आ जाता है
या फिर तब जब महुवा चूने लगता है
या फिर तब जब वनबेला फूलती है
नदी किनारे मेरी चिता दहक कर महके
और मित्र सब करें दिल्लगी
कि ये विद्रोही भी क्या तगड़ा कवि था
कि सारे बड़े-बड़े लोगों को मारकर तब मरा॥
7.
दंगों के व्यापारी
न कोई ईसा मसीह मानते हैं,
और न कोर्ट अबू बेन अधम।
उनके लिए जैसे चिली, वैसे वेनेजुएला,
जैसे अलेंदे, वैसे ह्यूगो शावेज,
वे मुशर्रफ और मनमोहन की बातचीत भी करवा सकते हैं,
और होती बात को बीच से दो-फाड़ भी
कर सकते हैं।
दंगों के व्यापारी कोई फादर-वादर नहीं
मानते,
कोई बापू-सापू नहीं मानते,
इन्हीं लोगों ने अब्राहम लिंकन को भी मारा,
और इन्हीं लोगों ने महात्मा गांधी को भी।
और सद्दाम हुसैन को किसने मारा?
हमारे देश के लम्पट राजनीतिक
जनता को झांसा दे रहे हैं कि
बगावत मत करो!
8.
दुनिया के बाजार में 
सबसे पहले क्या बिका था ?
तो सबसे पहले दोस्तों ।।।। 
बंदर का बच्चा बिका था।
और बाद में तो डार्विन ने सिद्ध बिल्कुल कर दिया,
वो जो था बंदर का बच्चा,
बंदर नहीं वो आदमी था।
9.
यह पुल हिल रहा है
तो क्यों हिल रहा है ?
तुमको पता है
हमको पता है
सबको पता है
क्यों हिल रहा है
दोस्तों वो भी इंसान थे
जिनके छाती पर पुल जमाया गया 
अब वही लापता है
न तुमको पता है
न हमको पता है
न किसी को पता है
कि क्यों लापता है।
10.
मैं भी मरूंगा 
और भारत भाग्य विधाता भी मरेगा 
मरना तो जन-गण-मन अधिनायक को भी पड़ेगा 
लेकिन मैं चाहता हूं 
कि पहले जन-गण-मन अधिनायक मरें 
फिर भारत भाग्य विधाता मरें 
फिर साधू के काका मरें 
यानी सारे के सारे बड़े-बड़े लोग पहले मर लें 
फिर मैं मरूं- आराम से उधर चल कर वसंत ऋतु में 
जब दानों में दूध और आमों में बौर जाता है 
या फिर तब जब महुवा चूने लगता है 
या फिर तब जब वनबेला फूलती है 
नदी किनारे मेरी चिता दहक कर महके 
और मित्र सब करें दिल्लगी 
कि ये विद्रोही भी क्या तगड़ा कवि था
11.
आसमान में धान बो रहा हूं 
कुछ लोग कह रहे हैं 
कि पगले! आसमान में धान नहीं जमा करता 
मैं कहता हूं, पगले! 
अगर जमीन पर भगवान जम सकता है 
तो आसमान में धान भी जम सकता है 
और अब तो दोनों में से कोई एक होकर रहेगा 
या तो जमीन से भगवान उखड़ेगा 
या आसमान में धान जमेगा।”
12. 
जब कवि रोता है तो भी कविता होता है 
जब कभी गाता है तो भी कविता होता है
कर्म है कविता जो मैं करता है 
फिर भी लोग पूछते हैं 
विद्रोही तुम क्या करते हो ?
13.
मरने को चे ग्वेरा भी मर गए,
और चंद्रशेखर भी,
लेकिन वास्तव में कोई नहीं मरा है।
सब जिंदा हैं,
जब मैं जिंदा हूं,
इस अकाल में।
मुझे क्या कम मारा गया है
इस कलिकाल में।
अनेकों बार मुझे मारा गया है,
अनेकों बार घोषित किया गया है
राष्ट्रीय अखबारों में, पत्रिकाओं में,
कथाओं में, कहानियों में
कि विद्रोही मर गया।
तो क्या मैं सचमुच मर गया!
नहीं, मैं जिंदा हूं,
और गा रहा हूं,
                                                                                                                                                
सुधाकर रवि

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