"विद यु विदआउट यु " के लेखक प्रभात रंजन से शुभम की बातचीत

पटना के नये लेख़क प्रभात रंजन यूँ तो पेशे से इंजीनियर हैं लेकिन आजकल लेखन के क्षेत्र में लोग इन्हें जानने लगे हैं। उसकी वजह हैं इनकी पहली पुस्तक 'विद यु विदआउट यु'। इस महीने रिलीज के बाद यह किताबों हिंदी पाठकों के बीच चर्चा में हैं। आज मैंने प्रभात रंजन से बातचीत की।

1. आपको पहली किताब की बधाई। आप अपने बारे में और अपनी किताब के बारे में हमें कुछ बताएं।

उत्तर- धन्यवाद। मैं भारतीय रेल में इंजीनियर के पद पर कार्यरत हूँI विद यू विदाउट कहानी है सच्चे प्यार और सच्ची दोस्ती की परिभाषा गढ़ते, उसे तलाशते और उसे अपने हिसाब से जीते निशिन्द,आदित्य और रमी की। ‘बचपन की अल्हड़ता’ और ‘व्यस्क होने पर की गम्भीरता’ के बीच पनपी दो प्रेम कहानियाँ जो आपस में उलझ कर सम्पूर्णता की चाह में मानवीय रिश्तों के भीतर और बाहर के तमाम अन्तर्द्वन्द से जद्दोजहद करते हुए जीवन के कई यक्ष प्रश्नों का साक्षात्कार करती हैं और उनके उत्तर ढून्ढती हैं।

2. विद यु विदाउट यु कैसी उपन्यास है? यह किस तरह के पाठकों के लिए है? हिंदी किताब का इंग्लिश शीर्षक... इस विषय पर आपकी कोई राय?

उत्तर- वस्तुत यह एक लव ट्रायंगल है लेकिन यह फ़िल्मी नहीं है बल्कि हमारे बीच घटित होती सी कहानी हैI इस कहानी के पात्र आपको अपने आस-पास हर जगह दिख जायेंगे, कुछ इस कहानी से प्रभावित दिखेंगे तो कुछ इस कहानी को प्रभावित करते दिखेंगेI
जिन्हें भी मानवीय रिश्तों की विवेचना में रूचि है उन्हें यह पसंद आयेगीI
इंग्लिश शीर्षक को लेकर मेरे मन में भी काफी दुविधा थी लेकिन जब आप इस पूरे उपन्यास को पढ़ेंगे तो पायेंगे कि इस कहानी के लिये यह बिल्कुल ही उपयुक्त हैI वैसे इस उपन्यास में एक इंग्लिश पोएम है जिसमें यह वाक्य कई बार प्रयोग में आया है, उससे भी इस शीर्षक को प्रभावित माना जा सकता हैI    

3. दोस्ती और प्यार दोनों आपस में परस्पर संबंध रखते हैं। आपकी उपन्यास भी इसी विषय पर है। ‎आज के समय में आप प्रेम और दोस्ती को किस प्रकार देखते हैं?

उत्तर- दोस्ती और प्यार दिल से जुड़े एक सरीखे दो निजी रिश्ते जिनके बीच कई बार काफी महीन रेखा होती है, तो कई बार ये आपस में ही इतने उलझे होते हैं कि निर्दोष मन के लिए उचित निर्णय कठिन हो जाता है। कई बार आप समझ ही नहीं पाते कि आपका दोस्त कब आपका प्यार बन गया, तो कई बार आप किसी के प्यार में होते हुए भी उसे दोस्त ही मानते रहते हैं।
मैं तो वर्तमान समय को दोस्ती का ही युग मानता हूँ, आज हम हर रिश्ते में दोस्ती ढूंढ रहे हैं, भाई-बहन के रिश्ते में, पिता-पुत्र, माँ-बेटी के रिश्ते में, पति-पत्नी के रिश्ते में और इन रिश्तों की सफलता की कुंजी भी दोस्ती की मात्रा में ही है, जिस रिश्ते में दोस्ती की मात्र जितनी ज्यादा है वह रिश्ता उतना ज्यादा सफल हैI
यह तेज आधुनिक दुनिया दिल से जुड़े भावनाओं के समक्ष आज भी ठहर सी जाती है, तमाम आधुनिकता भरा कोलाहल हमारे निर्दोष चाह के कमरों में कोई शोर नहीं कर पाता, वहाँ तो हम निश्चित रूप से तन्हा ही होते हैं, पौराणिक और पारम्परिक ही होते हैं। दिल से जुड़े रिश्ते आज भी हमें पारम्परिक रूप से ही उद्वेलित करती हैंऔर यदि उद्वेलित नहीं करती है तो सिर्फ इसलिए क्योंकि वह रिश्ता दिल से जुड़ा ही नहीं होता।   
    
4. ‎किताब रिलीज होने बाद लोगों के बीच चर्चा में है। सोशल साइट्स पर भी लोग इसके बारे में लिख रहे हैं। आपको कैसा रिस्पॉन्स मिल रहा है? विद यू विद आउट यू आपसे कितना जुड़ी हुई है?

उत्तर-यह अपने आप एक सुखद अनुभूति है, सच कहूँ तो पहली किताब होने की वजह से मैं काफी सशंकित थाI इतने अच्छे रिस्पांस की मुझे अपेक्षा नहीं थीI चूँकि आजकल प्रेम और दोस्ती पर आधारित काफी पुस्तक आ रही है ऐसे में पाठक जब इस कहानी में कुछ नया देख पा रहे हैं, उन्हें यह अपनी कहानी महसूस हो रही है तो स्वभाविक रूप से मुझे काफी ख़ुशी होती हैI
इस कहानी के पात्र काल्पनिक जरुर हैं पर मेरी कल्पना भी कहीं न कहीं मेरे स्वयं केअनुभवों से प्रभावित है, इस कहानी के कई पात्र और इस कहानी के कई घटनाक्रम सम्भवतः कभी न कभी, कहीं न कहीं किसी अन्य रूप में मेरी आँखों के सामने से गुजरे हैं जिनसे मुझे प्रेरणा मिली है।

5. ‎इंजीनियर से लेखक तक का सफर कैसा रहा? साहित्य में रुचि कब और कैसे आई? आप किन लेखकों को पढ़ते हैं?

उत्तर- साहित्य में रूचि बचपन से रही है, यह बात अवश्य है कि भौतिक आवश्यकताओं की पूर्ति के रेस में कुछ इस कदर उलझा कि अपनी इस रूचि को गम्भीरता से लेकर इस तरह लेखन के रूप में मूर्त रूप देने में मैंने काफी वक्त लगा दिया और निश्चित रूप से काफी विलम्ब से मैंने लिखना शुरू किया हैI
ऐसे तो अनेकानेक लेखक हैं जिन्हें मैं पढ़ते रहा हूँ लेकिन बचपन से अमृता प्रीतम की किताबों में विशेष रूचि रही हैI

6. आपने लेखन की शुरुआत कैसे की? अपने अन्दर के लेखक को कैसे पहचाना आपने?

उत्तर- लिखने का शौक तो हमेशा से रहा है और जैसा कि मैंने अभी कहा है कि रूचि होने के बाद भी काफी बिलंब से गम्भीरतापूर्वक लिखना प्रारम्भ किया हूँI कुछ कहानियाँ काफी समय से मन में थी जिनमें से एक विद यू विदाउट यू है, अब लगा कि इसे किताब का रूप देना चाहिये और परिणाम आपके सामने हैI
सच कहूँ तो मैं लेखक हूँ यह आप गुणीजन के मुँह से सुनने पर ही विश्वास हो पाता हैI इसीलिए यदि ऐसा सच में है तो उसे अब तक पहचान नहीं पाया हूँ और यदि पहचान पाया हूँ क्योंकि तीन किताब अब तक लिख चूका हूँ तो इसका मतलब है कि इस बात को स्वीकार नहीं पाया हूँI

7. ‎आज देशभर में हिंदी रचनाओं को खूब पढ़ा जा रहा है और लोग साहित्य के तरफ फिर से आकर्षित हो रहे हैं। इसके बारे में आपका क्या ख्याल है?

उत्तर- यह वाकई बहुत अच्छी बात हैI हिंदी पाठकों की उपलब्धता ने अब लेखकों को भी इस भाषा में लिखने को मजबूर किया है जिससे लोगों की साहित्यिक रूचि में उत्तरोत्तर विकास हो रहा है, अर्थात पाठकों और लेखकों की परस्पर सहभागिता ने हिंदी साहित्य को पुनः प्रतिष्ठित करना प्रारम्भ कर दिया है और यह हिंदी साहित्य के उज्ज्वल भविष्य के लिहाज से काफी शुभ संकेत हैI 

8. ‎सोशल मीडिया और अमेजन जैसी वेबसाइट आज लेखकों और पाठकों के लिए वरदान बन गया है। आप किस हद तक सोशल मीडिया से जुड़े हैं और पाठकों की प्रतिक्रिया आप को कैसे प्रभावित करती है?

उत्तर- मैं आपसे अक्षरशः सहमत हूँ, वास्तव में सोशल मीडिया और अमेजन जैसी वेबसाइट आज लेखकों और पाठकों के लिए वरदान बन गया है। फेसबुक और ट्विटर पर मैं भी सक्रिय हूँI पाठकों की प्रतिक्रिया देखकर अपने काम को उनकी नजर से देख पाने का मौका मिलता हैI वे जब तारीफ़ करते हैं तो लगता है कुछ अच्छा लिख पाया हूँ और जब वे आलोचना करते हैं तो अपनी कमी की तरफ नजर ले जाने का मौका मिल जाता हैI  

9. ‎हाल के समय में एक नया ट्रेन्ड देखा गया है कि कॉलेज लाइफ या युवा प्रेम पर बहुत किताबें लिखी और पढ़ी जा रही है। आपने भी कुछ ऐसी किताब लिखी है। आप इस पर क्या कहेंगे?

उत्तर- मैं तो समझता हूँ कि हर दौर के लेखकों के लिये युवा वर्ग और उनके बीच पनपने वाले प्रेम सम्बन्ध एक महत्वपूर्ण विषय रहा है और इसपर हमेशा लिखा जाते रहा हैI हाँ यह बात जरुर है कि अंग्रेजी के कुछ सफल लेखकों ने जब इस विषय को अपने लेखन के केंद्र में रखा और उन्हें उल्लेखनीय सफलता मिली तो अन्य लेखक भी इससे प्रभावित हुएI इसका एक कारण यह भी है कि आज इस युवा राष्ट्र का सबसे बड़ा पाठक वर्ग ये जागरूक युवा ही हैं तो स्वभाविक है कि लेखक इनके कॉलेज लाइफ और प्रेम सम्बन्धों पर ज्यादा लिखेंगेI

10. ‎आजकल के समय में हिंदी लेखकों के सामने कैसी चुनौतियां हैं? किताब प्रकाशित करवाने से लेकर पाठकों तक पहुंचने में क्या क्या चुनौतियां आपके सामने आई?प्रकाशन और लेखन से जुड़े अपने अनुभव बताएं ?

उत्तर- यह आपने बहुत ही अच्छा प्रश्न किया हैI यह बात सच है कि हिंदी भाषा के प्रति आकर्षण बढ़ा है लेकिन आज भी हमारे देश में सबसे ज्यादा पाठक अंग्रेजी भाषा के हैं और इस तथ्य का असर हिंदी लेखकों पर स्वभाविक रूप से पड़ता हैI जो बड़े प्रकाशक हैं वे अंग्रेजी को ज्यादा प्राथमिकता देते हैं क्योंकि अंग्रेजी का बाजार हिंदी से बड़ा हैI अब मेरे जैसा कोई व्यक्ति पहली बार कोई किताब लिखता है तो उसके सामने सबसे बड़ा प्रश्न प्रकाशक द्वारा उनके रचना को स्वीकृत होने या न हो पाने की ही होती हैI कई सारे सेल्फ पब्लिशर भी उपलब्ध हैं लेकिन यदि आप अपने लेखन के प्रति गम्भीर हैं तो फिर सेल्फ पब्लिशिंग के रास्ते आगे बढने से आपके विकल्प काफी सीमित हो जाते हैंI
मैंने भी जब अपनी पहली किताब लिखी तो काफी समय तक इस उलझन और उहापोह की स्थिति से गुजराI प्रकाशक आपके धैर्य की परीक्षा लेते हैं, दरअसल उनकी भी अपनी मजबूरियां हैं, आपके लिए आपकी एक रचना आपका सबकुछ होता है जबकि प्रकाशक ऐसे रचनाओं के बाढ़ के बीच होते हैंI संयोग से मैं इस मामले में थोड़ा सौभाग्यशाली हूँ कि मुझे अच्छा प्रकाशक मिलने में ज्यादा वक्त नहीं लगा और स्टोरी मिरर ने बहुत जल्दी मुझे स्वीकृति दे दीI प्रकाशन की पूरी प्रक्रिया से लेकर अब तक का उनका रवैया काफी सहयोगात्मक रहा है और इस हेतु मैं तहे दिल से आभारी हूँI   

11. ‎एक लेखक के तौर पर आगे की योजनाएं क्या है? आप आजकल क्या लिख रहे हैं? आपकी अगली किताब कब आएगी? कुछ बताइए उसके बारे में।

उत्तर- मैंने अभी-अभी अपनी दो किताब पूरी की है जिसमें कि एक किताब “प्रियंका एक पाकिस्तानी लड़की” अगले कुछ महीनों में प्रकाशित हो जानी चाहियेI  “प्रियंका एक पाकिस्तानी लड़की”- कहानी है पाकिस्तान के एक हिन्दू परिवार में जन्मी प्रियंका की, मुस्लिम पाकिस्तान में एक हिन्दू अल्पसंख्यक के रूप में उसके जीवन के दर्द व संघर्ष की, पाकिस्तान से दुखद पलायन की और धर्मनिरपेक्ष हिंदुस्तान में बहुसंख्यक हिन्दू के तौर पर अल्पसंख्यकों के दर्द के उसके अवलोकन की। यह कहानी आजादी के बाद खुद को बुरी तरह ठगा हुआ महसूस कर रहे पाकिस्तानी हिन्दुओं के उस अंतहीन दर्द की दास्ताँ भी बताती है जिसके तहत वे पाकिस्तान में हिंदुस्तानी हैं और हिंदुस्तान में पाकिस्तानी हैं।
इस पुस्तक के प्रकाशन के पश्चात् बिहार की एक पौराणिक लेकिन काफी महत्वपूर्ण कहानी पर काम करना हैI यदि आपने और पाठकों ने मुझे लेखक के रूप में स्वीकार किया है तो मेरी इच्छा है कि हिंदी भाषा में काफी अच्छा लिखने वाले लोग जो अब तक किसी कारणवश पुस्तक लिखने से झिझक रहे हैं उन्हें किताब लिखने के लिये प्रेरित करूंI अच्छे लेखक जितना ज्यादा इस भाषा में सक्रिय होंगे उतना ज्यादा पाठक वर्ग का निर्माण होगा और स्वतः ही हमारी राष्ट्रभाषा का प्रसार होगाI


Comments

मील के पत्थर

किसी तस्वीर में दो साल - उपांशु