दो लघु-कथाएँ

उत्कर्ष के ही शब्दों में उनके लिए लिखना खुद की ख़ुशी है, संतोष है और एक ऐसा उपक्रम है कि लोगों तक उनके दुनिया देखने का तरीका उनके अपने अंदाज़ में पहुँच सके।
दो लघुकथाएँ
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दूसरी दुनिया का आदमी
खिड़की बंद थी कब से उस शायर के घर की। रात के सन्नाटे को तोड़ती बस कुछ सुगबुगाहट सुनाई दे रही थी। चौराहे पर कुछ लोग अलाव ताप रहे थे। सर्द रुत की एक और रात जैसे-तैसे बीत रही थी।
"नज़र आये नहीं हमारे उस्ताद, क्या बात है?"
"हाँ, हम भी देखे नहीं कब से"
"पता नहीं। ठंड बहुत है न भईया इसीलिए ना निकले हों।"
"हाँ, इ हो सकत है। मंगरुआ कहत रहे उनकर घरे काम करे वाला कि बंद रहे लन मालिक अपना कमरा में।"
"अबे नहीं, पड़े होंगे कश लगा के नशे में धुत कहीं, कौन जाने का चलत है इन लोगों के मन में!"
"सही कहते हो भिया! अलग ही दुनिया के लोग होते हैं ई लोग।"
" बड़ा दुखी था आदमी हफ्ते पहले मिला था तो बोल रहा था कि दरिया का पानी बर्फ़ सा जम गया है और सूखी घास हो गयी है दुनिया।"
रात के अंतिम प्रहर उसकी चीख सुनाई दी। पड़ोस के लोग भागे आये। देखते हैं कि बेसुध पड़ा है शायर मोहल्ले का। अंगीठी में जल रही है उसकी डायरी और मेज़ पर बस पड़ी मिली उसकी आखरी प्रेम-कविता जो किसी ने पहले नहीं सुनी थी।
सुना है अब उस मोहल्ले में कोई बात नहीं करता उस मरहूम शायर की। कोई बतकही भी नहीं तापती अलाव किसी रात।
लालटेन की धीमी रौशनी में कोई पढ़ रहा है सदी की आखरी प्रेम-कविता!
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नहीं है वो
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वहाँ नीम के पेड़ से ऊपर एक खिड़की है जो पेंट की गयी है पीले रंग से। पुराना-सा मकान है। एक झूला भी है उसके छत पर। एक अमलतास का पेड़ भी था और एक सोडेवाले की दुकान...ठीक उस नीम के पेड़ वाली गली के आखिर में। एक ऊँचा टीला...लोग...और बतकही। दरिया का पानी भी साफ़ और वो चरवाहा भी मस्ताना। डूबते हुए सूरज के साथ नहर के पानी में पैरों की छ्प-छप।
"तुम तो बड़े चुप-से रहते हो"
"मैं ऐसा ही हूँ"
बारिश हो रही है लगातार... कल से ही। सन्नाटे के बीच झींगुर का अलाप भी। कुछ लिखने की कोशिश कर रहा है वो। खिड़की से बारिश की छींटे आ रही हैं। खिड़की से देखता है वो... दूर टिमटिमाता हुआ लैंप-पोस्ट। ये वाली रात भी ऐसे ही बीत गयी।
सुबह से ही नहीं दिखाई दिया। कहीं नदी किनारे तो नहीं गया। वहाँ भी नहीं है। चुप-सा रहता है वो।
तुमने देखा कल को?
-"नहीं...नहीं है वो..."
अतीत का कैनवास
उस अमलतास और गुलमोहर की टहनियों की तरह
कल रात आई आँधी में
कहीं खो गया है।
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मील के पत्थर