निर्मल करे जो मन... - निशान्त रंजन

"मैं मानता हूँ , मुझे पता है कि क्या और कौन चिरकालिक है जो एक सभ्यता संस्कृति की शहर की तरह सफेद आकाश में भी जीवित रहेगा जहाँ प्रकाश की किरणें भी अपना समापन देखती हैं." निर्मल वर्मा को पढ़ते समय रिल्के की कुछ पंक्तियों की याद कुछ यूँ आती है जैसे एक धुंध को चीरता हुआ प्रकाश हमारे सामने आता और आनेवाले कोहरे और धुंध को स्थगित कर देता है. निर्मल वर्मा को पढ़ते वक़्त कुछ ऐसा आभास हुआ की जैसे निर्मल वर्मा को पढ़ने का सबसे सही समय सर्दी का मौसम ही है, कड़कड़ाती हुई ठंड. यूं भी निर्मल वर्मा की बहुत कहानियों का तानबाना शिमला और पहाड़ी और शीतल प्रदेशों में ही बुना गया है. निर्मल वर्मा की लेखनी पर प्राग देश का एक अनूठा प्रभाव देखने को मिलता है. इस प्रभाव को हम "वे दिन" उपन्यास को पढ़ते वक़्त देख सकते हैं. प्राग की बर्फबारी और ऊजले-सफेद बर्फ की चादरों का वर्णन एक पाठक को उसके हिस्से की खुशी देती है क्योंकि वह किताब पढ़ते वक़्त एक असिमित यात्रा भी कर रहा होता है. निर्मल वर्मा को पढते वक़्त मुझे एकांत में रहना अच्छा लगता है. भीड़भाड़ और कोलाहल से मुक्त दुनिया जहाँ शोर के नाम पर हम दिल की धड़कन को सुन सकें और आवाज़ के नाम पर अपनी आत्मा की आवाज़. पर ऐसा जरूरी नहीं कि निर्मल वर्मा को पढ़ने के लिए एकांत का होना जरूरी है. यूं भी तो एक आदमी एक साथ कई ज़िंदगियों को जी रहा होता है. और कई जिंदगियों में से एक जिंदगी को एकांत को समर्पित रखता ही है. निर्मल वर्मा की कहानियों में, उपन्यासों में कोई जल्दबाजी नहीं है.आप किसी भी मोड़ पर उनकी कृतियों को शोर में तब्दील होते नहीं देख सकते हैं.उनकी कहानियों में एक विशेष आग्रह है जीवन के प्रति, प्रकृति और जीवन के मध्य जो कुछ है जिसमें हमारा अस्तित्व और अस्तित्व संघर्ष भी गर्भित है, उसके लिए प्रकृति और जीवन दोनों से विशेष याचना हैं. एक मनुष्य के अंतर्मन में ऐसा भाग होता है जो प्रेम करने से इंकार कर देता है. वह भाग मृत हो जाना चाहता है.और मनुष्य को वक़्त की एक दहलीज पर इसी भाग को भूलना पड़ता है. निर्मल वर्मा को पढ़ने से एक पाठक का मन निर्मल होता है. "एक चिथड़ा सुख" पढ़ते वक़्त कई बार ऐसा महसूस हुआ कि अचानक ही एक जिंदगी से निकलकर एक बर्फीले तूफान की चपेट में आ गया और जैसे ही तूफान का स्पर्श समाप्त हुआ, मेरे सामने कई और ज़िंदगियाँ दस्तक दे रही हो. निर्मल के शब्द दिल की गहराई तक उतरते हैं और उनका स्पर्श इतना गहरा होता है कि जैसे एक कुशल गोताखोर सागर की अतल गहराई को माप आया हो. मैदानी इलाकों में युवतियों के शरीर पर पड़े वस्त्र ही ठंड की गहराई का पता बताते हैं. कथा शिल्प को समझने और जानने के लिए ठीक इसी प्रकार निर्मल वर्मा के शब्द हैं. "वे दिन" पढ़ने के बाद ऐसा लगता है की प्रेमाधारित उपन्यासों को पूर्णरूप से पढ़ पाया हूँ.इस सफर की शुरुआत हुई" गुनाहों का देवता" से, उसके बाद सूरज का सातवां घोड़ा, नदी के द्वीप और इस कड़ी को मुक़्क़मल किया "वे दिन" ने ही. निर्मल वर्मा की कहानियों की बात करें तो मुझे उनकी कहानी संग्रह " कौव्वे और काला पानी" बेहद पसंद है. उनकी कहानियां दहलीज, एक दिन का मेहमान, जलती झाड़ी भला किस पाठक को अच्छा नहीं लगेगी.निर्मल वर्मा के शब्द एक पाठक का चिंतन, कर्म और आस्था के बीच की दूरियों को कम कर देता है. उनके शब्दों में मानवीय मूल्यों पर बनते और खंडित होते रिश्ते, फासलों और एक उन्मुक्त पीड़ा की झलक मिलती है. इस कड़ी में निर्मल वर्मा पर बात जारी रहेगी.


निशान्त कहानियाँ और लेख लिखते हैं.

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