दुनिया का सबसे खतरनाक हथियार क्या है ? जिसके एक बार चल जाने के बाद पूरा का पूरा इलाका में सन्न रह जाये ? आप कहेंगे कि एटम बम या फिर हाइड्रोजन बम. तो साहब आज तक आप भ्रम में हैं. इन सब से भी एक खतरनाक हथियार है. सौभाग्यवश उस हथियार का खजाना है भारत के पास. सभ्यता और संस्कृति का हथियार. कहीं एक बार एटम बम चल जाए तो आदमी मर जाएगा है , आने वाली पीढ़ी अपंग पैदा होगी. लेकिन उनका विचार नष्ट नहीं हो जायेगा , सोच रहेगा , प्रतिरोध रहेगा. लेकिन मियां एक बार सभ्यता और संस्कृति का हथियार चल गया तो सारी जिरह बंद , सारे तर्क कूड़ेदान में . आप कहेंगे कि उस लड़की के साथ गलत हो गया. जवाब आएगा कि जरुर उसने भारतीय संस्कृति का पालन न किया होगा .
साल के पहले दिन ही बेंगलुरु के सड़कों पर नए साल का जश्न मानती लड़कियों के साथ दुर्व्यवहार बड़े स्तर पर होता है. शहर के जगह-जगह पर लड़कियों के साथ अभद्र व्यवहार की जाने की खबर और सीसीटीवी विडियो आते हैं. शर्म की जाने वाली इस घटना पर कर्नाटक राज्य के गृह मंत्री कहते हैं – ये घटना लड़कियों के वेस्टर्न कपडे और वेस्टर्न कल्चर के कारण हुए. सरकार पूरा का पूरा मुद्दा कल्चर / संस्कृति को कल्चर के नाम पर लड़कियों को ही दोषी बता रही है. अजीब लगता है पढ़-सुन कर. मतलब किसी भी निंदनीय घटना को कल्चर के नाम पर इग्नोर किया जा सकता है. यह घटना न देश की पहली घटना है है न यह आखिरी होगी. लेकिन आखिर कब तक कल्चर के नाम पर ऐसी घटना होती रहेगी. संस्कृति के नाम पर ऐसी घटनाएँ लड़कियों के साथ ही क्यों होता है ? लड़कों पर सभ्यता – संस्कृति से बहक जाने को लेकर ऐसी घटनाएँ क्यों नहीं होती. कुछ साल पहले शाहरुख़ खान की एक फिल्म आई थी ‘स्वदेश’. शाहरुख़ खान अभिनीत पात्र मोहन गाँव की सभा में अमेरिका भारत के सांस्कृतिक टकराहट के संदर्भ में चल रहे बहस में कहता है कि ‘जब भी हम मुकाबले में दबने लगते हैं एक ही चीज़ का आधार लेते हैं संस्कार और परम्परा . अमेरिका ने अपने बूते पर तरक्की की है. उनके अपने संस्कार हैं, अपनी परम्परा है. अब ये कहना कि उनके सोच, विचार, उनका रहना सहन, उनकी मान्यताएं ख़राब है हमारी महान, यह गलत है.’
हमारा देश भारत कर्ज न चुका पाने के कारण आत्महत्या कर रहे किसानों के बावजूद हर वर्ष अरबों रुपये धन हथियार खरीदने में लगा देता है . ये हथियार ख़रीदे जाते हैं फ्रांस , अमेरिका , ब्रिटेन , रूस से पश्चिमी सभ्यता वाला देश. जब भी अपनी सभ्यता को श्रेष्ठ और पश्चिम सभ्यता को पतित बताने वालों को सुनता हूँ तो अनायास से सवाल जेहन में आता है की जब पश्चिम का हथियार बुरा नहीं है तो फिर पश्चिम का सभ्यता कैसे बुरा हो सकता है ? जब आदिवासियों पर अंधाधुंध चल रहे पश्चिम निर्मित ऑटोमैटिक रायफल बुरा नहीं है फिर पश्चिम निर्मित जीन्स सड़क पर पहन कर चल रही लड़की कैसे बुरी हो सकती है ?
साल के पहले दिन ही बेंगलुरु के सड़कों पर नए साल का जश्न मानती लड़कियों के साथ दुर्व्यवहार बड़े स्तर पर होता है. शहर के जगह-जगह पर लड़कियों के साथ अभद्र व्यवहार की जाने की खबर और सीसीटीवी विडियो आते हैं. शर्म की जाने वाली इस घटना पर कर्नाटक राज्य के गृह मंत्री कहते हैं – ये घटना लड़कियों के वेस्टर्न कपडे और वेस्टर्न कल्चर के कारण हुए. सरकार पूरा का पूरा मुद्दा कल्चर / संस्कृति को कल्चर के नाम पर लड़कियों को ही दोषी बता रही है. अजीब लगता है पढ़-सुन कर. मतलब किसी भी निंदनीय घटना को कल्चर के नाम पर इग्नोर किया जा सकता है. यह घटना न देश की पहली घटना है है न यह आखिरी होगी. लेकिन आखिर कब तक कल्चर के नाम पर ऐसी घटना होती रहेगी. संस्कृति के नाम पर ऐसी घटनाएँ लड़कियों के साथ ही क्यों होता है ? लड़कों पर सभ्यता – संस्कृति से बहक जाने को लेकर ऐसी घटनाएँ क्यों नहीं होती. कुछ साल पहले शाहरुख़ खान की एक फिल्म आई थी ‘स्वदेश’. शाहरुख़ खान अभिनीत पात्र मोहन गाँव की सभा में अमेरिका भारत के सांस्कृतिक टकराहट के संदर्भ में चल रहे बहस में कहता है कि ‘जब भी हम मुकाबले में दबने लगते हैं एक ही चीज़ का आधार लेते हैं संस्कार और परम्परा . अमेरिका ने अपने बूते पर तरक्की की है. उनके अपने संस्कार हैं, अपनी परम्परा है. अब ये कहना कि उनके सोच, विचार, उनका रहना सहन, उनकी मान्यताएं ख़राब है हमारी महान, यह गलत है.’
हमारा देश भारत कर्ज न चुका पाने के कारण आत्महत्या कर रहे किसानों के बावजूद हर वर्ष अरबों रुपये धन हथियार खरीदने में लगा देता है . ये हथियार ख़रीदे जाते हैं फ्रांस , अमेरिका , ब्रिटेन , रूस से पश्चिमी सभ्यता वाला देश. जब भी अपनी सभ्यता को श्रेष्ठ और पश्चिम सभ्यता को पतित बताने वालों को सुनता हूँ तो अनायास से सवाल जेहन में आता है की जब पश्चिम का हथियार बुरा नहीं है तो फिर पश्चिम का सभ्यता कैसे बुरा हो सकता है ? जब आदिवासियों पर अंधाधुंध चल रहे पश्चिम निर्मित ऑटोमैटिक रायफल बुरा नहीं है फिर पश्चिम निर्मित जीन्स सड़क पर पहन कर चल रही लड़की कैसे बुरी हो सकती है ?
वही कुछ लोग कहते हैं कि ऐसी घटनायों से बचने के लिए लड़कियों को चाकू, स्प्रे जैसी चीज़े ले कर चलना चाहिए. उन्हें मार्शल आर्ट सीखनी चाहिए. ऐसा सुझाव बचकाना भरा है. इससे आप सामने वाले व्यक्ति से भले ही लड़ सकते हैं लेकिन उस विचार से नहीं जो उस व्यक्ति के जैसा हजारों तैयार कर रहा है. आजकल फेमिनिस्म की बात हर कोई कर रहा है , खुद को फेमिनिस्ट साबित करने में हर कोई लगा है . चाहे वो इंटेलेक्चुअल टाइप लोग हैं, एक्टर हैं , स्पोर्ट पर्सन है या चाहे बाज़ार ही . जिस बाज़ार ने लड़कियों को एक वस्तु के तौर पर स्थापित किया, आज वही बाज़ार फेमिनिस्म का सबसे बड़ा रहनुमा बना हुआ है. क्यों की आज फेमिनिस्म भी बिक रहा है. साल भर में कई फ़िल्में फेमिनिस्म पर आ ही जाती है. जो फिल्म वाले महिलायों को बराबरी का मेहनताना नहीं देते हैं वो हल्ला कर के फेमिनिस्म की बात करते हैं इसलिए नहीं की उन्हें वाकई में महिलायों की समस्या से कोई सहानुभूति है बल्कि सारा खेल धंधे का है. देश की टॉप स्पोर्ट पर्सन हैं साइना नेहवाल . बाज़ार हमें यह बताता है की साइना नेहवाल के मेडल जितने से देश की लड़कियों को प्रेरणा मिलेगी और फिर यही बाज़ार साइना नेहवाल से चेहरे को सुन्दर और गोरे बनाने की क्रीम बिकवाता है. साइना नेहवाल को प्रेरणा मान लडकियाँ एक एकदम आगे तो जाएँगी लेकिन फेनिमिस्म में खोह में छिपे नस्लवादी सोच उन्हें भीतर से कमजोर कर देगी.
बंगलौर की घटना हो या कही और की घटना सारा मामला पुरुषवादी सोच और बाज़ार की उपज है. हमने सभ्यता और परंपरा के नाम पर वर्षों सती प्रथा में जिन्दा विधवाओं को जलाया है. जिसपे हमें शर्म होना चाहिए लेकिन आज भी कल्चर के नाम पर ऐसा घटनाएँ का होना आदिम और पशु बनाता है.
सुधाकर
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