पटना के गांधी मैदान में 4 फरवरी को शुरू होने वाला 23वां पटना पुस्तक मेला 14 फरवरी को समाप्त हो गया । ग्यारह दिन तक चलने वाले इस पुस्तक मेला में दर्जनों किताबों का लोकार्पण हुआ , कई काव्य गोष्ठियों , पुस्तक अंश पाठ का आयोजन हुआ । साथ ही विभिन्न सामाजिक पहलुओं पर परिचर्चा भी आयोजित हुई ।
पटना पुस्तक मेला यूँ तो हर वर्ष नवंबर-दिसंबर के महीने में आयोजित किया जाता है लेकिन 350वें प्रकाश वर्ष के कारण दो महीने विलम्ब से शुरू हुआ। 4 फरवरी को मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने राष्ट्रीय स्तर पर आयोजित होने वाली इस पुस्तक मेला उद्घाटन किया । साथ ही पुस्तक मेला को राष्ट्रीय स्तर से अंतरराष्ट्रीय सलाह दी ।
क्या क्या हुआ ?
सी आर डी द्वारा आयोजित पुस्तक मेले का इस वर्ष का थीम कुशल युवा सफल बिहार रखा गया । युवा को कुशल बनाने के उद्देश्य से ही मेला में कार्यशाला भी रखा गया । कार्यशाला में क्लास 12 तक के बच्चों को कविता लेखन, कहानी लेखन, पेटिंग करना बताया गया । हिंदी फिल्म गीतकार राजशेखर ने बच्चों की कविताएं सुनी , कविताओं को और बेहतर बनाने की बात बताई साथ ही अपनी कविता सुनाई , फिल्म में गीत लिखने के अपने सफर को बताया ।
पुस्तक मेला में साहित्यिक पत्रिका पाखी द्वारा कवि सम्मेलन का आयोजन 5 फरवरी को किया गया । कवि आलोक धन्वा के अध्यक्षता में और पाखी के संपादक प्रेम भारद्वाज के उपस्थिति में सरेंद्र स्निग्ध ,राकेश रंजन , शहंशाह आलम , राजकिशोर राजन, प्रत्युष चंद्र मिश्रा, मुसाफिर बैठ, निवेदिता, आभा दुबे, स्मिता वाजपेयी, नाताशा ने अपनी कविताएं पढ़ी । कवि सम्मेलन में गीतकार राजशेखर ने भी अपनी कविताएं पढ़ीं . कार्यक्रम का अंत आलोक धन्वा द्वारा उनकी चर्चित कविता भागी हुई लड़की के अंश पाठ से हुई .
वहीं राजकमल प्रकाशन के स्टॉल पर कथाकार हृषिकेश सुलभ की नयी कहानी संग्रह के बाबत प्रेम भारद्वाज ने उनसे बातचीत की । हृषिकेश सुलभ से उनकी पहले की कहानियों और अब नये समय में बदल रहे कहानियों के संबंधित प्रेम भारद्वाज ने कई सवाल पूछे । बातचीत के क्रम में कथाकार हृषिकेश सुलभ ने अपनी कहानी अमली के ज़िक्र आने पर बताया की 'मुझे आज यह कहानी ज्यादा प्रिय नहीं है , यह कहानी सरल है और इसका कहानी का परिवेश भी नहीं रहा.
मेला में बिहार के दो ख्याति प्राप्त रचनाकार कुमार नयन की ग़ज़ल संग्रह और राकेश रंजन की कविता संग्रह दिव्या कैद खाने में का लोकार्पण आलोक धन्वा ने किया । राजकमल प्रकाशन के स्टॉल पर आयोजित लोकार्पण समारोह में डॉ शंकर प्रसाद ने कुमार नयन की एक ग़ज़ल का तरनुम से सुनाया । वहीं मेले में बने भोजपुरी मुक्ताकाश के मंच पर कथाकार अवधेश प्रीत और भावना शेखर की बातचीत अवधेश प्रीत के आने वाले उपन्यास 'अशोक राजपथ' के ऊपर हुई । बातचीत में भावना शेखर ने कई महत्वपूर्ण किये और अवधेश प्रीत ने उतने से संजीदगी से सारे जवाब दिए । स्त्री विमर्श के सवाल पर कथाकार अवधेश प्रीत ने सिमोन द बोउआर के कथन “स्त्री पैदा नहीं होती बनाई जाती है” से आज के समाज की हकीकत सामने रखी . अवधेश प्रीत से पुरे बातचीत का मुख्य केंद्र आज के समय में बढ़ रही औपचारिकता रहा. हाल के वर्षों में हिन्दू -मुस्लिम दो धर्मों के लोग जितने खुल के . स्वभाविक रूप से मिलते थे आज सब एक बनी हुई औपचारिकता में मिल रहे हैं .
विश्व पुस्तक मेला , दिल्ली में लोकार्पित राजकमल प्रकाशन की महत्वाकांक्षी उपन्यास 'अकबर' के लेखक शाजी ज़मा ने भी पुस्तक मेला में पाठकों से अपनी बीस साल शोध के बाद लिखी पुस्तक 'अकबर' से बातचीत की. राजकमल प्रकाशन के सम्पादक सत्यानन्द निरुपम की उपज लप्रेक सिरीज़ की भी पुस्तक मेला में धूम रही. इश्क में माटी सोना के लप्रेककार गिरीन्द्रनाथ झा पुरे पुस्तक मेला में बने रहे . पाठकों से उनका मिलना हर दिन होता रहा. राजकमल के स्टाल पर लप्रेक सिरीज़ पर बातचीत भी रखी गयी. इस बातचीत में दिल्ली से इश्क कोई न्यूज़ नहीं के लप्रेक कार विनीत कुमार भी हिस्सा लिए . लप्रेक के उद्देश्य और इसकी सार्थकता पर विनीत कुमार कहते हैं की हम सब का उद्देश्य साल दो साल बैठ कर उपन्यास या किताब लिखना नहीं है , हर क्षण बदल रहे इस दुनिया में जो कहानी घट रही है , जो कहानी न्यूज़ रूम में , क्लास में , खेत में ,बाज़ार में बन रही है उन्ही कहानी को तुरंत फेसबुक पर लिख दिया . कभी सोचा नहीं की यह किताब की शक्ल लेगी .
राजकमल से आई युवा लेखक क्षितिज रॉय की किताब गंदी बात पर विनीत कुमार ने उनसे बातचीत की. क्षितिज ने लेखन के दुनियां में अपने नए नए अनुभव , किताब के पटकथा पर बातचीत के साथ किताब का अंश पाठ भी किया . अंश पाठ के क्रम में हृषिकेश सुलभ , अवधेश प्रीत ने अपनी 'अशोक राजपथ' का अंश पाठ किया .
२३ वे पटना पुस्तक मेला में शरीक हुए उदय प्रकाश , पत्रकार शशि शेखर भी आकर्षण के केंद्र रहे . वही मेले के आखिरी दिन बच्चों का कवि सम्मलेन का आयोजन बिहार बाल भवन द्वारा किया गया . बच्चों की कविता सुनने के लिए अच्छी खासी भीड़ जमा रही .मंच से आत्म विश्वास से भरे कविता सुनाते ये बच्चे इस पुस्तक मेला की खास उपलब्धि रहे . क्यों की आने वाले पीढ़ियों में कविता के संस्कार विकसित करना उन्हें आने वाले कल के लिए तैयार करना है.
पाठक बनाम फैन
साहित्य में आमतौर पर पाठक होते हैं जो लेखक से आत्मिक रूप से जुड़ते हैं जैसे कोई सगे संबंधी हो , लेखक भी पाठक से वैसा ही संबंध स्थापित करता है. लेकिन हाल के वर्षों में साहित्य में फैन कल्चर पनप रहा है, जो फेसबुक और ब्रांडिंग से और तेज़ी से बढ़ रहा है . आज पाठक लेखक से उसके कहानी , उसके किरदार , उसके प्लाट पर सवाल नहीं करता , उसे तो लेखक के साथ एक सेल्फी चाहिए बस. इससे ना लेखकों को पाठकों की आलोचना , उनके मत ज्ञात है , ना ही पाठक को किताब वाला लेखक और वास्तविक जीवन में लेखक के व्यक्तित्व का अंतर पता चलता है. फैन कल्चर का पटना पुस्तक मेला भी में बना रहा. तस्वीर और सेल्फी का दौर यहाँ भी खूब चलता रहा. यह फैन कल्चर का ही देन है कि लप्रेक पर चर्चा के लिए कुर्सियां भर जाती है , लोग खड़े होकर भी चर्चा को सुनते हैं . लेकिन उसके तुरंत बाद हृषिकेश सुलभ , अवधेश प्रीत के अंश पाठ को सुनने ज्यादा लोग नहीं आते , कुर्सियां खाली रह जाती हैं .
कविता : राम नाम सत्य है
चर्चित कवि आलोक धन्वा कहते हैं कि ‘कविता हाथ में ली हुई वीणा है. यदि इसे हमारे बच्चे नहीं बजाएंगे, तो यह मनुष्य-विरोधी समय उठाकर इसे संग्रहालय में डाल देगा. यह वीणा नहीं बचेगी तो लोकतंत्र भी नहीं बचेगा.’ अरुण कमल , आलोक धन्वा का शहर है पटना और इस पटना में लगे पुस्तक मेला में कविताएँ हाशिये पर रही. आलोक धन्वा कविता का होना लोकतंत्र के होने से जोड़ते हैं. बावजूद इसके पटना पुस्तक मेला में खरीददार के हाथ में कविता की कविता नहीं दिखती. मेले में कई कवि सम्मलेन तो आयोजित किए गये , लेकिन पाठकों के ध्यान के लिए कविता संग्रह बाट जोहती रह गयी .
गार्गी प्रकाशन : देखन में छोटन लगे घाव करे गंभीर
गार्गी प्रकाशन का स्टाल कोने में लगी थी , छोटे से जगह में लगे इसके किताब और पोस्टर हर पाठकों का ध्यान खिंचती रही. रामवृक्ष बेनीपुरी की अप्रकाशित किताब रूस की क्रांति , लाल चीन , लाल रूस , कार्ल मार्क्स को गार्गी प्रकाशन ने काफी खोज बिन के बाद प्रकाशित किया . अंतिम दिन होते होते रामवृक्ष बेनीपुरी के किताबों की सारी प्रतियाँ बिक गयी. इन किताबों के अलावें गार्गी ने फिदेल कास्त्रों पर , क्यूबा की क्रांति , रुसी उपन्यास , गोर्की की कहानियां पर कई किताबों काफी बिकी. मार्क्सवाद परिचय माला के टाइटल से गार्गी ने पांच पुस्तिका का प्रकाशन किया है. जो मार्क्सवाद , पूंजीवाद , राजसत्ता , समाजवाद के गहन जानकारी को सरल और सुलभता से पाठकों को उपलब्ध करता है. गार्गी प्रकाशन के पोस्टर भी कई पाठकों के हाथों में देखी गयी.
मेड इन इंडिया
मेला में मेड इन इंडिया के थीम पर पेंटिंग्स , पुआल आर्ट , हैण्ड मेड आर्टिस्टिक वस्तुओं का भी स्टाल लगा था . मिथिला पेंटिंग , खिलौने , मूर्तियाँ मेले में आये लोगों का ध्यान आकर्षित रहीं . मेले में लगे खाने-पीने के लिए लिट्टी चोखा , फ़ास्ट फ़ूड के स्टाल पर लोगो की भीड़ काफी रही.
कुल मिलाकर इस बार के पुस्तक मेले में भीड़ और साल की तुलना में कम रही , पाठक भी किताब उलट पुलट देखते लेकिन दाम देख मन मसोस कर किताब वापस रख देते . किताबों के दाम तेज़ी से बढ़ रहा और वो उस समय में जब मध्य वर्ग के पाठकों के प्राथमिकता से किताब दूर जाती दिख रही है.
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