एक खत पोस्ट ऑफिस के नाम
मेरे प्यारे पोस्ट-ऑफिस ख़त लिखने की बात जब भी होती है तुम्हें ना जोड़ना कैसे हो सकता है। लोग अब तुम्हारे ठौर का रास्ता भूल गए हैं। तो सोचा तुम्हारा ही हाल-चाल पूछ लूँ। जैसा कि तुम्हें देखता हूँ मैं। जंग लग रहे शरीर पर से पेंट उतर रही है। क्या ये सब तुम्हें पता था कि ऐसा भी हो सकता था तुम्हारे साथ। तुम तो हर-दिल अज़ीज़ हुआ करते थे। अनेक भावों से भरे पत्रों को रखते थे अपने आरामगाह में मसरूफ़। डाकिया जो कभी सबका खासमखास हुआ करता था, स्याही में छिपे लब्जों को किश्त-दर-किश्त अपने सही पते पर पहुँचा दिया करता था।यहाँ तक कि खाली कागज़ भी एक सफ़ल और खास पैगाम हुआ करती थी। तुम तो रिश्तों के बनने-संवरने का मुख्य-केंद्र हुआ करते थे। और फ़िर तुम्हारा इस बियाबां में होना! क्या बदलाव इतना ज़रूरी है? शायद हाँ पर मुझे तो किसी भी चीज़ का बिसरना कचोटता ही है। खैर! तुम होगे शायद कही, किसी सुदूर गाँव में निभा रहे होगे अपना रिश्ता, ऐसा जरूर होगा। तुम्हारे होने के सफरनामे का सुबूत दिल के शामियाने में हमेशा रहेगा। तुम्हारी यादों के अनेक बिम्ब हैं 'लाल-बक्से'! जैसे उस छोटे बच्चे का अपने बाबा के कंधे पर चढ़...