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मील के पत्थर
किसी तस्वीर में दो साल - उपांशु
सौंफ की पतली डंठलों पर ओस की बूंदों में और आसमां की आँखों पर चमकते फ़्लैश में कुहासे की तस्वीर जो खिंचती है , कैमरे की खींची हुई तस्वीर से कहीं बेहतर है . दो साल बाद , सबा , जब यह तस्वीर रंकेश को दिखाएगी , सर्द सुबहों को उठने की आदत न होने से मचल उठेगा वह एक क्षण के लिए ही , फिर नींद प्यारी होने की वजह से कोहरे के लिए अपना प्रेम रातों में ही ज़ाहिर करना शाइस्ता समझेगा . लेकिन दो साल बाद , ठंड उसे सिर्फ बेचैनी ही दे पाएगी , प्रेम या प्रेम की गर्माहट में उत्पन्न हुई आकांक्षाएं भी जिससे उबार लाने में विफल हो जाएं . तत्काल अज्ञानता के बुलबुले में प्रागैतिहासिक ख़ुशी से लबरेज़ आसमां घंटे का चौथाई हिस्सा एक तस्वीर के नाम कर देती है . सौंफ की हर डंठल पर ओस की बूँदें , न कम न ज्यादा ; गुरुत्वाकर्षण की मुरीद सब एक सी कि पारदर्शी मोतियों की एक लड़ी सौंफ की हर सब्ज़ छड़ी से गिरे तो मिटटी के फर्श पर केवल एक ही आवाज़ हो . कुहासा तने ...
Editorial post - Amidst all the horrors, the real horror is the realization of our own guilt : Asiya Naqvi
I unlocked my laptop and the moment I typed "jai hind", my password, I was questioned by my ghoul, 'Are you a muslim?' or 'Are you a nationalist?' you must be thinking what this ghoul is? This web series is about a demon which was called by a helpless human being when he failed to made his daughter understand the difference between patriotism and jingoism. A man named shahnawaz Rahim who questioned the way of the mission of' wapasi 'of those who had mentally crossed the boundary set by the nationals but were living inside the nation.' A Ghoul exists in everyone regardless of caste,creed,region and religion but is mostly dormant.The whole series can also be taken as a thriller and scary drama but it had a deeper implication where the ghoul is nothing but the guilty conscience projected as the most repulsive image which can instill instant cacophobia. Amidst all the horrors, the real horror is the realization of our own...
बैसाख का महीना - निशान्त
बैसाख का महीना बीत गया था और जेठ भी अपने चरम था.आम का पेड़ फल से लदा हुआ था और सूरज के ताप से फल पकने ही वाले थे. जिन लोगों का बगीचा था और जिनको बगीचे की रखवाली मिली हुई थी, वे हिसाब लगाने में व्यस्त थे कि इस साल आम से कितना आमद होगा.औरतें बेचैन थीं कि आम कब घर आये और जल्द से जल्द नये सगे-संबंधियों के यहाँ भेज दिया जाये. कुछ लोग आषाढ़ की पहली बारिश के इंतज़ार मे थे. आम के फल में रस का संचार पहली बारिश के बाद ही होता है. काली घटा के संग आम खाने का आनंद अलग ही होता है. खासकर मालदह आम का स्वाद तो एक-दो बारिश के बाद ही चढ़ता है. सोनपुर गाँव में आम का सबसे बड़ा बगीचा संप्रदा प्रसाद का ही था. गाँव के दक्षिणी छोर पर दस बीघा जमीन में फैला हुआ आम का बगीचा. सैकड़ो आम के पेड़, तरह-तरह के. चौबीस प्रकार का पेड़ था बगीचा में. अचार के लिए अलग पेड़, लू से बचाव के लिए अलग पेड़, कंठ का प्यास मिटाने के लिए अलग पेड़ और...