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मील के पत्थर
अपना शहर और रंगमंच
अधिकांश लोग समझते हैं सपनो का घर है रंगमंच और सारे अभिनेता जगाते हैं नशा अंधेरे कमरे में.. ब्रतोल्त ब्रेख्त का यह काव्यांश यह बतलाने के लिए काफी है कि फिलवक्त रंगमंच के संबंध में लोगों ने किस प्रकार की राय बना रखी है. बहरहाल आज लोगों का इस प्रकार से सोचना भी कहीं ना कहीं जायज हीं जान पड़ता है ! वर्तमान समय स्वयं अपने आप में इस बात का गवाह है जो हमारे देश के लोगों में इन दिनों सोचने-समझने की क्षमता कम हुई है, साथ हीं कायदे से पढ़ने-लिखने वाले लोग भी लगातार कम हो रहे हैं. यह भी इसका प्रतिफल हीं है जो मोटे दिमाग वाले लोगों का हुजूम हमारे इर्द-गिर्द इतना ज्यादा बढ़ गया है जो कि सरकार चुनने से लेकर, सच्ची कला की परख करने और चीजों को देखने-समझने तक में अधिकांश लोग एकदम से गलत दिशा की ओर अग्रसर हो रहे हैं. इन्हीं बातों के कारण वह आजकल काफी चिढ़ा हुआ सा रहता था तथा लोगो से बातचीत करते हुए भी उसकी बातों में चिड़-चिड़ापन देखा जा सकता था. वैसे उस समय में भी जब हिन्दी सिनेमा की कद्र करनेवाले ज्यादातर लोग यश चोपड़ा की फिल्मों का मुरीद हुआ करते थे उसे अनुराग कश्यप की फिल्...
बैसाख का महीना - निशान्त
बैसाख का महीना बीत गया था और जेठ भी अपने चरम था.आम का पेड़ फल से लदा हुआ था और सूरज के ताप से फल पकने ही वाले थे. जिन लोगों का बगीचा था और जिनको बगीचे की रखवाली मिली हुई थी, वे हिसाब लगाने में व्यस्त थे कि इस साल आम से कितना आमद होगा.औरतें बेचैन थीं कि आम कब घर आये और जल्द से जल्द नये सगे-संबंधियों के यहाँ भेज दिया जाये. कुछ लोग आषाढ़ की पहली बारिश के इंतज़ार मे थे. आम के फल में रस का संचार पहली बारिश के बाद ही होता है. काली घटा के संग आम खाने का आनंद अलग ही होता है. खासकर मालदह आम का स्वाद तो एक-दो बारिश के बाद ही चढ़ता है. सोनपुर गाँव में आम का सबसे बड़ा बगीचा संप्रदा प्रसाद का ही था. गाँव के दक्षिणी छोर पर दस बीघा जमीन में फैला हुआ आम का बगीचा. सैकड़ो आम के पेड़, तरह-तरह के. चौबीस प्रकार का पेड़ था बगीचा में. अचार के लिए अलग पेड़, लू से बचाव के लिए अलग पेड़, कंठ का प्यास मिटाने के लिए अलग पेड़ और...
Bandukbaz Babumoshay : the cult it could have been.
Vast deserted wastelands, two cheeky killers, some selfish politicians/mafia trying to usurp power, a couple of freewheeling women, a lot of guns and bullets and sharp dialogues entwined in a plot which showed promise at least in the first half - bandukbaz babumoshay had all the potential in the world to become a cult in a genre defining way. It could have been a tarantino flick - american west like in all its splendour with all the black humour, the accent, the abuse and unique characters. the first half got me very excited - the main anti-hero pretty tight about his rules of killing, a sidekick wanting to be better than the guru, their tussels, the sex - in my heart i started rooting for a convulated version of a sort of batman-jason todd thing- vigilantes, only contract killers, on adventures in an indian version of american west, dealing with love, politics and police. is it too wrong to dream? what started with a brilliant nawaz - to...