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मील के पत्थर
मनोज कुमार झा : हर भाषा में जीवित-मृत असंख्य लोगों की सांस बसती है
मनोज उन थोड़े कवियों में से हैं जो लिखते हैं तो अपनी भाषा से भाषा के बाकी पथों को तोड़ते हुए चलते हैं. उन थोड़े लोगों में से भी हैं जो rigorously पढ़ते हैं और पाश्चात्य चिंतकों और दर्शन पर उनकी कमाल की पकड़ है. 1. कविता क्या है आपके हिसाब से?क्यों लिखनी शुरू की? हमलोग बातचीत शुरू करें इससे पहले मैं उद्धरण उदृत करना चाहूँगा heraclitus को , जो कहते हैं, कि Let us not conjecture at random about great things. कविता क्या है , इसको कई लोगों ने कई तरह से कहा है , मैं अभी तक उस स्थिति तक नहीं पहुंचा हूँ जहाँ आके पूरे जोर से कह सकूं की कविता क्या है, हाँ यह जरुर बता सकता हूँ की कविता क्या नहीं है . कोई कविता देखूं तो कह सकूं की यह कविता नहीं है, क्यों नहीं है . चूँकि मैं दूसरा काम मैं जानता नहीं था , खेल में कमजोर था , पढने में ठीक ठाक था, कविता लिखने लगा. 2. पठन का रचना में क्या योगदान है, आपको क्या लगता है? बहुत योगदान है , दृष्टि देता है , पता चलता है कि आपकी परम्परा में क्या कुछ हो चुका है और आप कहाँ हैं.चीज़ें इतनी जटिल होती गई हैं कि सिर्फ common sense से कवि का का
दो लघु-कथाएँ
उत्कर्ष के ही शब्दों में उनके लिए लिखना खुद की ख़ुशी है, संतोष है और एक ऐसा उपक्रम है कि लोगों तक उनके दुनिया देखने का तरीका उनके अपने अंदाज़ में पहुँच सके। दो लघुकथाएँ ................. दूसरी दुनिया का आदमी खिड़की बंद थी कब से उस शायर के घर की। रात के सन्नाटे को तोड़ती बस कुछ सुगबुगाहट सुनाई दे रही थी। चौराहे पर कुछ लोग अलाव ताप रहे थे। सर्द रुत की एक और रात जैसे-तैसे बीत रही थी। "नज़र आये नहीं हमारे उस्ताद, क्या बात है?" "हाँ, हम भी देखे नहीं कब से" "पता नहीं। ठंड बहुत है न भईया इसीलिए ना निकले हों।" "हाँ, इ हो सकत है। मंगरुआ कहत रहे उनकर घरे काम करे वाला कि बंद रहे लन मालिक अपना कमरा में।" "अबे नहीं, पड़े होंगे कश लगा के नशे में धुत कहीं, कौन जाने का चलत है इन लोगों के मन में!" "सही कहते हो भिया! अलग ही दुनिया के लोग होते हैं ई लोग।" " बड़ा दुखी था आदमी हफ्ते पहले मिला था तो बोल रहा था कि दरिया का पानी बर्फ़ सा जम गया है और सूखी घास हो गयी है दुनिया।" रात के अंतिम प्रहर उसकी चीख सुनाई दी। पड़ोस के लोग भा
ओ धरती! तुमसे मुँह मोड़कर मैं मरना नहीं चाहता - अस्मुरारी नंदन मिश्र
अस्मुरारी पटना के हम पाठकों के लिए नए हैं. उनको कुछ दिन पहले ही जल्दी जल्दी दो तीन बार सुनने का मौका मिला. उनकी कवितायेँ ईर्ष्या भी पैदा करती हैं और प्रभावित भी करती हैं, कवि अपनी ज़मीन पर इतने मज़बूत और इतने मंझे हुए कि प्रतिरोध अपने इंडिविजुअल शिल्प के साथ कविताओं में मैनिफेस्ट होता है. हम उनकी कुछ कविताओं को भी इस साक्षात्कार के साथ लगा रहे हैं. उनका एक संग्रह "चांदमारी समय में" बोधि प्रकाशन से प्रकाशित से. - अंचित १. कविता क्या है आपके हिसाब से? क्यों लिखनी शुरू की? ‘कविता क्या है?’ अपने आप में बहुत बड़ा सवाल है| और उसकी कोई सर्वमान्य परिभाषा हो भी नहीं सकती| लेकिन मेरे लिए वह जगत के उद्दीपन के प्रति शाब्दिक अनुक्रिया है| जरूरी नहीं कि यह अनुक्रिया उद्दीपन के साथ लगी ही आए| लेकिन है वह यही| मुझे हमेशा लगता रहा है कि सृजनशीलता मनुष्य की सामान्य विशेषता है| वैसा कोई व्यक्ति नहीं, जो सृजनशील न रहा हो| लेकिन अभिव्यक्ति के रूप में अंतर आ जाता है| कोई किसी कलारूप को अपनाता है, तो कोई किसी विधा का हो जाता है| कलारूपों और विधाओं के चुनाव में कहीं